Bhartiyam Logo
All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari
Jan 16, 2014
एक विपक्ष ऐसा भी है- जनता से चुने जाने की बजाय जन परिषद से नामित होना चाहता हैं
एक विपक्ष ऐसा भी है- जनता से चुने जाने की बजाय जन परिषद से नामित होना चाहता हैं
बंगला देश मे विरोधी दलो द्वारा चुनाव की बजाय प्रधान मंत्री को हटाने की मांग के समर्थन मे
बंद -प्रदर्शन और हिंसात्मक आंदोलन के बावजूद अवामी लीग की शेख हसीना ने चुनाव सम्पन्न कराये | हालांकि ब्रिटेन और अमेरिका के दबाव
के बावजूद उन्होने चुनाव कराये | जबकि ये प्रजातांत्रिक देश बेगम ज़िया के लिए चुनाव को स्थगित करने का सुझाव दे रहे थे | लेकिन
थायलैंड मे भी कुछ ऐसा ही हो रहा हैं , वहा भी विपक्ष दल डेमोक्रट की मांग यनहा दो कदम आगे हैं | वे न केवल प्रधान मंत्री की चुनाव की
कोशिस का बहिसकार कर रहे हैं -वरन उनकी मांग हैं की सरकार की जगह एक सूप्रीम काउंसिल गठित की जाये | जो जन परिषद बनाए और
वे ही '''नेताओ '''का चुनाव करे | अब लगेगा की यह मांग कितनी अजीब हैं ! जनता के प्रतिनिधि चुनाव द्वारा ही सरकार बनाते हैं |
परंतु जब राजनीतिक दल चुनाव का मैदान छोड़ कर नामित होने की राह पकड़ ले , तब उसे लोकतन्त्र का भला तो होने से रहा हैं | परंतु
राजनेताओ की महत्वाकांछा चुनाव से घबराती रहती हैं | इसीलिए बंगला देश और थायलैंड के विरोधी दल चुनाव की अग्नि परीक्षा से गुजरने
से गुरेज करते हैं क्योंकि वे ''जनता''की परीक्षा मे असफलता से भयभीत रहते हैं | दूसरे उन्हे ""बहुमत" का भी भरोसा नहीं होता | इन दो
कारणो से ही बंगला देश और थायलैंड के विरोधी दल ''चुनाव''' का सामना नहीं करना चाहते हैं |वरना वे ''येन -केन प्रकारेण""'
'''सत्ता''' पर काबिज होना ही चाहते हैं |क्या यही जनतंत्र हैं |
कुछ ऐसा ही प्रयोग नेपाल मे तत्कालीन राजा महेंद्र ने किया था ---जब
उन्होने राष्ट्रिय पंचायत का गठन किया था | जिसमे कुछ लोग निर्वाचित होते थे सीधे जनता द्वारा , और बाक़ी राजा द्वारा नामित होते थे | परंतु यह प्रयोग भी नेपाल मे शोषण को रोक नहीं सका और परिणामस्वरूप वनहा पर हिंसक माओवादी आंदोलन का जन्म हुआ | जिसने
दशको तक नेपाल को खून - खराबा मे डूबा दिया | जिसकी परिणीति राज वंश की दर्दनाक अंत मे हुआ | फिर भयाक्रांत नेपाल मे
माओवादी नेता प्रचंड ने सत्ता सम्हाली | लेकिन न तो वे देश की हालत सुधार सके न ही नेपाल की जनता मे विश्वास जमा सके | इसलिए
जब वहा चुनाव हुए तो प्रचंड खुद तो पराजित हुए वरन उनकी पार्टी भी बुरी तरह हारी | लेकिन सत्ता के शौकीन प्रचंड ने जनता के फैसले
को मानने से इंकार कर दिया | | उन्होने सत्ता मे अपनी भागीदारी बनाए रखने के लिए उन्होने दुबारा बंदूक उठाने की धम्की दे डाली |
फलस्वरूप एक बार फिर संविधान सभा की नौबत आ गयी | अन्य राजनीतिक दलो ने देश को हिंसा से बचाने के लिए उनकी मांग को
स्वीकार भी कर लिया | वहा आज भी निर्वाचित सरकार का गठन नहीं हो पाया --क्योंकि निर्वाचन मे पराजित नेता को सत्ता चाहिए थी |
सवाल हैं यह कैसा लोकतन्त्र - प्रजातन्त्र हैं जिसमे नेता चुनाव से भाग रहे हैं + क्योंकि वे जनता का विसवास खो चुके हैं | ऐसे मे कोई नया प्र प्रयोग ही जनमत के भरोसे को बनाए रखने मे सफल होगा |
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment