लड़ाई सादगी से भ्रषटाचार के लिए जो पहुंची सत्ता तक,
अन्ना हज़ारे ने जब लोकपाल की लड़ाई शुरू की थी तब उन्हे उम्मीद भी ना रही होगी की उनके शिष्य अरविंद
केजरीवाल इसी के सहारे मुख्य मंत्री पद तक पहुँच जाएँगे | इसी लिए जब '''आप''' पार्टी ने विधान सभा चुनाव लड़ा तब और परिणामो की घोसणा होने के बाद के बाद तदुपरान्त सरकार बनाने तक उनकी प्रतिकृया काफी ''ठंडी''सी रही | सरकार बनाते ही कुछ फैसलो पर केजरीवाल को अपने कदम पीछे खिचने पड़े |जैसे दिल्ली मे सचिवलाय मे मीडिया के प्रवेश पर '''पाबंदी'''और पाँच कमरो वाले सरकारी निवास को मुख्य मंत्री आवास और कार्यालय बनाने पर उठे विवाद के कारण भी केजरीवाल को भगवनदास रोड स्थित आवास छोडने का फैसला लेना पड़ा था | इन डी डी ए आवासो का निर्माण ""उनके अफसरो " के लिए किया गया हैं | एक सवाल यह उठता हैं की अगर एक आइ ए एस अधिकारी जो की मुख्य मंत्री के मातहत काम करता हैं --अगर वह इन आवासो मे रह सकता हैं तब उसके ""बॉस " क्यो नहीं ?
एक सवाल अक्सर पूछा जा रहा हैं की दिल्ली मे भषटाचार की लड़ाई से शुरू हुआ संगर्ष दिल्ली की सरकार बनने का सबब कैसे बन गया ? लेकिन हाल की घटनाओ से एक बात साफ नज़र आती हैं की "" महात्मा गांधी की टोपी "" को जो इज्ज़त आप पार्टी ने दिलाई हैं वह काम , गांधी की विरासत को सम्हालने वाली काँग्रेस भी नहीं कर सकी | विसवास मत के दौरान दिल्ली की विधान सभा मे जितनी ''टोपियाँ'' " दिखाई पड़ी उतनी तो लोकसभा मे भी नहीं दिखाई पड़ती | महात्मा का सिधान्त था की कम से कम मे काम चलाना चाहिए |
अब बात करते हैं की ''आप ''' का असर भारत की राजनीति मे कितना हुआ हैं ? इसका जवाब हैं की चाहे राजस्थान हो या झारखंड सभी स्थानो मे मंत्रियो के भरी ""लाव - लाशकर"" मे कमी की जा रही हैं | आलीशान और भव्य निवास स्थानो की जगह रहने योग्य की शर्त बन गयी हैं | वसुंधरा राजे ,राजस्थान की मुख्य मंत्री ने पारंपरिक मुख्य मंत्री आवास की जगह --छोटा बंगला मांगा हैं | जबकि वे एक राजसी परिवार से आती हैं ,जिसने जन्म से ही ऐश ओ आराम की ज़िंदगी बिताई हो अगर वह अब ''रहने लायक जगह''' की बात करे तो लगता हैं की राज नेताओ के दिमाग मे यह बात आ रही है की अब ""वैभव शाली ठाठ - बाट """ नहीं चलेगा | सुरक्षा नियमो के आधार पर एक मंत्री के साथ दो गाड़ी चलती हैं | मुख्य मंत्री के साथ ""सोलह गाड़िया "" चलती हैं | अब सवाल हैं की ''बड़े बाबुओ'' ने खुद ताम-झाम लेने के लिए पहले अपने '''साहब''' को उसका आदी बनाया , फिर धीरे से अपना भी बंदोबस्त कर लिया | इसी लिए पाँच कमरो के निवास मे ""बाबू"" रह सकता हैं पर """जन प्रतिनिधि """ नहीं | मज़े की बात यह हैं की नौकरशाही के इस शिकंजे मे विरोध मे बैठे राजनीतिक दल भी फंस जाते हैं | तब अफसोस होता हैं की शासन कौन चला रहा हैं ? चुने हुए प्रतिनिधि या नौकरशाही ? जो जनता को जवाबदेह नहीं हैं | यह बड़ा सवाल हैं जिसका उत्तर भारतीय प्रजातन्त्र को खोजना होगा | |
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