आरोपो के घेरे मे न्यायाधीश
यूं तो अक्सर ही अदालतों मे व्याप्त भ्रस्टाचार के किस्से कहानिया गली चौराहो मे सुनने को मिल जाते हैं , परंतु जैसा की होता हैं की पुलिस को लाख गाली देते हो पर जब कोई बात होती हैं तब पहुँचते थाने ही हैं | फिर भले ही वह रिपोर्ट लिखने के लिए चार -पाँच सौ रुपये निकल जाये | पर जाते तो वंही हैं | उसी प्रकार हर अत्याचार या ज्यादती के खिलाफ लोग अदालत की शरण मे ही जाते हैं , फिर भले ही वंहा अहलकार - पेशकार और वकील साहब धीरे - धीरे नोट निकलवाते जाये | पर न्याया पाने की आशा मे वह लुटता रहता हैं | सिर्फ एक उम्मीद पर की '''जज''' साहब दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे |
उस भले मानुष को क्या मालूम की आज के बाजरवाद की दुनिया मे सब कुछ बिकाऊ हैं , यहा तक की '''इंसाफ''' की भी बोली लगती हैं | कई बार एक जैसे मामलो मे अलग - अलग प्रकार का फैसला होना अथवा गरीब को हथकड़ी और धन पशु या दबंग आरोपी को पुलिस बड़े आराम से ले जाती हैं | तब लगता हैं की कानून भी बिकता हैं | अब बात करे न्याया धीशों की , अभी -अभी सूप्रीम कोर्ट के जज गांगुली साहब पर एक ट्रेनी वकील ने यौन शोषण का आरोप लगाया | सूप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने तीन जजो की समिति छानबीन के लिए बना दी |अब महिला संगठनो ने तो तुरंत जज साहब के खिलाफ पुलिस मे रिपोर्ट लिखा कर कारवाई करने की मांग की | मतलब उनकी गिरफ्तारी की ....| जबकि पूर्वा न्यायाधीश आलतमस कबीर साहब ने ट्रेनी वकील के आरोप को बेबुनियाद करार दिया | पेंच इस मामले यह हैं की 2जी स्पेकट्रूम के फैसले मे गांगुली जी ने उद्योग घरानो के खिलाफ फैसला दिया था , उन्होने अन्य मामलो मे भी बड़े - बड़े लोगो के हितो के खिलाफ फैसला दिया था | अब यह शक हो रहा हैं की जज के अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्हे नीचा दिखने की यह कारवाई तो नहीं हैं ? आज के माहौल मे इस को खारिज भी नहीं किया जा सकता | लेवकिन फिलवक्त तो जज साहब आरोपो के घेरे मे आ गए या लाये गए यही सवाल हैं ?
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