दूकान लगी नहीं की लूटेरो ने मंसूबे बनाने शुरू कर दिये
चुनाव का मौसम आया नहीं ,हाँ हफ्ते दस दिन की बात हैं , जब प्रदेश सरकार का सारा काम काज एक तरह से माने तो stand still हो जाएगा | सभी अधिकारी फैसले करने से बचने लगेंगे | उनका जवाब होगा की आचार संहिता ''लग गयी हैं """ | मानी आचार संहिता न हुई कोई भूत हो गया ,जिसके डर के मारे सब काँप रहे हैं | बाबू लोगो की इस मौके पर मौज हो जाती हैं , उन्हे ''वे सब काम करने की आज़ादी मिल जाती हैं ''' जिसे वे "'किनही""कारणो से करना चाहते हैं | वह कारण या तो सगे संबंधी का काम होता हैं अथवा ''फिर बड़ा माल''लेकर काम करना होता हैं "" | मतलब यह की सरकारी मोहकमो मे दिन प्रतिदिन के भी काम करने के किए कहे जाने पर दफ्तरो मे जवाब होगा की साहब आचार संहिता लग गयी हैं अब तो सब काम चुनाव के बाद ही होंगे | नयी सरकार आएगी तब नए फैसले लिए जाएँगे |वे आपको यह समझाने का प्रयास होगा की अब आप वनहा से चलते बनिए , आपका काम ""चुनाव नामक जीव ने रोक दिया हैं ""
अगर बाबू लोगो के यह हाल होगा तो बड़े अधिकारियों का रुख होगा की साहब क्या करें , हमारे तो हाथ ही बांध दिये हैं इस चुनाव ने , मानो पहले वे खुले हाथो से सब काम निपटाया करते थे | मंत्री के यानहा सिर्फ संतरी ही मिलेंगे क्योंकि साहब तो चुनाव ''लड़ने'' गए हैं का जवाब मिलेगा | भूले - भटके एक आध मंत्री मिला तो , तो पक्का जानिए की उसे पार्टी ने टिकिट नहीं दिया हैं और ज़िले तथा निर्वाचन छेत्र मे ''न जाने ''' का पार्टी का हुकुम हो गया हैं | वो तो बस आपसे चुनाव की हवा किस ओर बह रही हैं यह जानने की कोशिस करेंगे | एवं अपना ज्ञान बताएँगे की ऐसा क्यों हो रहा -अगर मेरे बताए तरीके से काम करते तो ऐसा नहीं होता , आदि आदि |
अब बात करे मीडिया की तो एलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो चुनाव की पूर्वा संध्या मे अपने पैर फैला दिये हैं | अभी हाल मे दो चैनलो ने तो इसका शुभारंभ भी कर दिया | उन्होने बकायदा एक सर्वे कर के मध्य प्रदेश - राजस्थान और -छतीसगरह मे भारतीय जनता पार्टी के जीतने भविस्य वाणी भी कर दी हैं |इन दोनों ही चैनलो ने कर्नाटक विधान सभा चुनवो मे भी सर्वे किया था , परंतु वह मतदान के बाद किया गया था | जिसे मत गन्ना के पूर्वा दुनिया के सामने लाया गया था | वैसे निर्वाचन आयोग ने किसी भी प्रकार के सर्वे प्रकाशित करने पर ''प्रतिबंध '' लगा रखा हैं | परंतु वह बंदिश चुनाव की तारीखों की घोसना के उपरांत लागू होती हैं | फिलवक्त तो चुनाव कार्यक्रम की घोसणा नहीं हुई हैं |
कर्नाटक चुनाव के परिणामो की घोसणा के पूर्वा ""कुछ"" संशय तो लोगो के मन मे था की सरकार काँग्रेस की बन पाएगी या भारतीय जनता पार्टी निरदलियों को लेकर सरकार का गठन करेगी | इनहि चैनलो ने न केवल भारतीय जनता पार्टी को शताधिक सीट जीतने की भविस्य वाणी की थी | वनही काँग्रेस को साथ सत्तर सीट पर समेट दिया था | परंतु जब परिणाम आए तब तक़ भविस्यवानी पूरी तरह से चूर - चूर हो चुकी थी | दूसरे दिन जब इन चैनलो पर '''चुनावी मीमांसा''' की जा रही थी तब भी उनमे कोई छोभ नहीं था | न ही उन्होने एक बार यह स्पष्ट किया की वे अपनी ''गलती'' पर पशेमान है | इस तर्क के पीछे एक वजह थी की उस सर्वे को एक कंपनी ने किया था -जो ऐसे ही सर्वे किया करती हैं | हालांकि कितनी उसकी भविस्य वाणि सच हुई यह तो एक शोध का विषय हैं | शोध का विषय तो यह भी हैं की बार गलत साबित होने पर भी चैनल क्यों इन्हे सर्वे का काम देते हैं | यह खेल हैं टार गेट रेटिंग पॉइंट्स का |
लेकिन क्या इसका दूसरा अर्थ नहीं हो सकता ? की यह जानबूझ कर की गयी कारवाई हो जो किसी गुट द्वारा अपने लाभ के लिए किया गया हो ? क्योंकि इन सर्वे मे न तो यह बताया गया हैं की की किन छेत्रों मे और किस वर्ग के लोगो के कितने व्यक्तियों से बात करके इसे तैयार किया गया हैं ? यद्यपि ऐसे सर्वे मे इस बार कुछ अकलमनदी करते हुए सत्तारूद दल की होनी हैं उतनी ही संख्या विपक्ष को प्रदान की गयी हैं | परंतु सरकार बनेगी भारतीय जनता पार्टी की | यद्यपि ऐसा हो भी सकता हैं और नहीं भी हो सकता हैं सावल यह भी हैं की क्या इससे वास्तव मे चुनाव के परिणामो पर या प्रचार पर कोई असर पड़ेगा ? अनुभव यह कहता हैं की ऐसे तथ्य जमीनी हक़ीक़त से दूर ही होते हैं |
क्योंकि चुनाव मे मतदान के दिन तक़ क्या - क्या घटनाए होती हैं , उनका क्या प्रभाव होगा अथवा किसी स्थानीय मामला किस पार्टी को अथवा किस उम्मीदवार के हक़ मे जाएँगे यह कहना वह भी लगभग तीस दिन पूर्व , जब अभी सिर्फ नेताओ ने ही दौरे का सिलसिला शुरू हुआ हैं |अभी पार्टियो ने अपने पत्ते भी नहीं खोले हैं---_मतलब की किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोसीत नहीं किया हैं | हाँ उन पार्टियो ने जरूर अपने प्रत्याशी घोसीत किए जिनका वजूद सरकार बनाने की भूमिका मे नहीं हैं | जैसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी | शायद दो एक दिन मे गोंडवाना पार्टी भी मैदान मे उतरने का ऐलान कर दे | परंतु भले ही इनको सत्ता मे हिस्सेदारी नहीं मिले , परंतु कई जगह इनकी मौजूदगी दोनों बड़े दल के लिए ""वोट काटू"" हो सकते हैं | जिस से परिणाम मे भारी उलट फेर हो सकती हैं | क्या इन तथ्यो को सर्वे मे ध्यान रखा गया हैं |
अब पुनः मूल मुद्दे पर आते हैं की अमरीकी तरीके से किए गए सर्वे भारत जैसे देश मे कितना सत्य हो सकता हैं ? यह महत्वपूर्ण मुद्दा हैं | फिर आखिर इनका इस्तेमाल करने का उद्देस्य क्या हो सकता हैं ? केवल राजनीतिक दलो को अपने प्रचार की लिस्ट मे एक वादा भर दे देने का ,अथवा मीडिया को लिखने और दिखाने का मसाला देने के लिए जिस से टीआरपी मे सुधार किया जा सके ?
चुनाव का मौसम आया नहीं ,हाँ हफ्ते दस दिन की बात हैं , जब प्रदेश सरकार का सारा काम काज एक तरह से माने तो stand still हो जाएगा | सभी अधिकारी फैसले करने से बचने लगेंगे | उनका जवाब होगा की आचार संहिता ''लग गयी हैं """ | मानी आचार संहिता न हुई कोई भूत हो गया ,जिसके डर के मारे सब काँप रहे हैं | बाबू लोगो की इस मौके पर मौज हो जाती हैं , उन्हे ''वे सब काम करने की आज़ादी मिल जाती हैं ''' जिसे वे "'किनही""कारणो से करना चाहते हैं | वह कारण या तो सगे संबंधी का काम होता हैं अथवा ''फिर बड़ा माल''लेकर काम करना होता हैं "" | मतलब यह की सरकारी मोहकमो मे दिन प्रतिदिन के भी काम करने के किए कहे जाने पर दफ्तरो मे जवाब होगा की साहब आचार संहिता लग गयी हैं अब तो सब काम चुनाव के बाद ही होंगे | नयी सरकार आएगी तब नए फैसले लिए जाएँगे |वे आपको यह समझाने का प्रयास होगा की अब आप वनहा से चलते बनिए , आपका काम ""चुनाव नामक जीव ने रोक दिया हैं ""
अगर बाबू लोगो के यह हाल होगा तो बड़े अधिकारियों का रुख होगा की साहब क्या करें , हमारे तो हाथ ही बांध दिये हैं इस चुनाव ने , मानो पहले वे खुले हाथो से सब काम निपटाया करते थे | मंत्री के यानहा सिर्फ संतरी ही मिलेंगे क्योंकि साहब तो चुनाव ''लड़ने'' गए हैं का जवाब मिलेगा | भूले - भटके एक आध मंत्री मिला तो , तो पक्का जानिए की उसे पार्टी ने टिकिट नहीं दिया हैं और ज़िले तथा निर्वाचन छेत्र मे ''न जाने ''' का पार्टी का हुकुम हो गया हैं | वो तो बस आपसे चुनाव की हवा किस ओर बह रही हैं यह जानने की कोशिस करेंगे | एवं अपना ज्ञान बताएँगे की ऐसा क्यों हो रहा -अगर मेरे बताए तरीके से काम करते तो ऐसा नहीं होता , आदि आदि |
अब बात करे मीडिया की तो एलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो चुनाव की पूर्वा संध्या मे अपने पैर फैला दिये हैं | अभी हाल मे दो चैनलो ने तो इसका शुभारंभ भी कर दिया | उन्होने बकायदा एक सर्वे कर के मध्य प्रदेश - राजस्थान और -छतीसगरह मे भारतीय जनता पार्टी के जीतने भविस्य वाणी भी कर दी हैं |इन दोनों ही चैनलो ने कर्नाटक विधान सभा चुनवो मे भी सर्वे किया था , परंतु वह मतदान के बाद किया गया था | जिसे मत गन्ना के पूर्वा दुनिया के सामने लाया गया था | वैसे निर्वाचन आयोग ने किसी भी प्रकार के सर्वे प्रकाशित करने पर ''प्रतिबंध '' लगा रखा हैं | परंतु वह बंदिश चुनाव की तारीखों की घोसना के उपरांत लागू होती हैं | फिलवक्त तो चुनाव कार्यक्रम की घोसणा नहीं हुई हैं |
कर्नाटक चुनाव के परिणामो की घोसणा के पूर्वा ""कुछ"" संशय तो लोगो के मन मे था की सरकार काँग्रेस की बन पाएगी या भारतीय जनता पार्टी निरदलियों को लेकर सरकार का गठन करेगी | इनहि चैनलो ने न केवल भारतीय जनता पार्टी को शताधिक सीट जीतने की भविस्य वाणी की थी | वनही काँग्रेस को साथ सत्तर सीट पर समेट दिया था | परंतु जब परिणाम आए तब तक़ भविस्यवानी पूरी तरह से चूर - चूर हो चुकी थी | दूसरे दिन जब इन चैनलो पर '''चुनावी मीमांसा''' की जा रही थी तब भी उनमे कोई छोभ नहीं था | न ही उन्होने एक बार यह स्पष्ट किया की वे अपनी ''गलती'' पर पशेमान है | इस तर्क के पीछे एक वजह थी की उस सर्वे को एक कंपनी ने किया था -जो ऐसे ही सर्वे किया करती हैं | हालांकि कितनी उसकी भविस्य वाणि सच हुई यह तो एक शोध का विषय हैं | शोध का विषय तो यह भी हैं की बार गलत साबित होने पर भी चैनल क्यों इन्हे सर्वे का काम देते हैं | यह खेल हैं टार गेट रेटिंग पॉइंट्स का |
लेकिन क्या इसका दूसरा अर्थ नहीं हो सकता ? की यह जानबूझ कर की गयी कारवाई हो जो किसी गुट द्वारा अपने लाभ के लिए किया गया हो ? क्योंकि इन सर्वे मे न तो यह बताया गया हैं की की किन छेत्रों मे और किस वर्ग के लोगो के कितने व्यक्तियों से बात करके इसे तैयार किया गया हैं ? यद्यपि ऐसे सर्वे मे इस बार कुछ अकलमनदी करते हुए सत्तारूद दल की होनी हैं उतनी ही संख्या विपक्ष को प्रदान की गयी हैं | परंतु सरकार बनेगी भारतीय जनता पार्टी की | यद्यपि ऐसा हो भी सकता हैं और नहीं भी हो सकता हैं सावल यह भी हैं की क्या इससे वास्तव मे चुनाव के परिणामो पर या प्रचार पर कोई असर पड़ेगा ? अनुभव यह कहता हैं की ऐसे तथ्य जमीनी हक़ीक़त से दूर ही होते हैं |
क्योंकि चुनाव मे मतदान के दिन तक़ क्या - क्या घटनाए होती हैं , उनका क्या प्रभाव होगा अथवा किसी स्थानीय मामला किस पार्टी को अथवा किस उम्मीदवार के हक़ मे जाएँगे यह कहना वह भी लगभग तीस दिन पूर्व , जब अभी सिर्फ नेताओ ने ही दौरे का सिलसिला शुरू हुआ हैं |अभी पार्टियो ने अपने पत्ते भी नहीं खोले हैं---_मतलब की किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोसीत नहीं किया हैं | हाँ उन पार्टियो ने जरूर अपने प्रत्याशी घोसीत किए जिनका वजूद सरकार बनाने की भूमिका मे नहीं हैं | जैसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी | शायद दो एक दिन मे गोंडवाना पार्टी भी मैदान मे उतरने का ऐलान कर दे | परंतु भले ही इनको सत्ता मे हिस्सेदारी नहीं मिले , परंतु कई जगह इनकी मौजूदगी दोनों बड़े दल के लिए ""वोट काटू"" हो सकते हैं | जिस से परिणाम मे भारी उलट फेर हो सकती हैं | क्या इन तथ्यो को सर्वे मे ध्यान रखा गया हैं |
अब पुनः मूल मुद्दे पर आते हैं की अमरीकी तरीके से किए गए सर्वे भारत जैसे देश मे कितना सत्य हो सकता हैं ? यह महत्वपूर्ण मुद्दा हैं | फिर आखिर इनका इस्तेमाल करने का उद्देस्य क्या हो सकता हैं ? केवल राजनीतिक दलो को अपने प्रचार की लिस्ट मे एक वादा भर दे देने का ,अथवा मीडिया को लिखने और दिखाने का मसाला देने के लिए जिस से टीआरपी मे सुधार किया जा सके ?
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