प्रधानमंत्री घोषित करने की परंपरा -कितनी सच्ची ?
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय मे शुक्रवार को हुई प्रैस कान्फ्रेंस मे आद्यकश राजनाथ सिंह ने कहा की ""पार्टी के संसदीय दल ने नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप मे चयन किया हैं """ | उन्होने कहा की पार्टी की """परंपरा"""रही हैं की चुनाव के पूर्वा प्रधान मंत्री पद के लिए व्यक्ति को चुना जाता हैं | जनहा ताक़ मुझे स्मरण हैं की अटल जी जब तेरह दिन की सरकार के प्रधान मंत्री बने तब उन्हे , राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने तब बुलाया जब काँग्रेस दल के नेता राजीव गांधी ने सरकार बनाने के प्रस्ताव को नामंज़ूर कर दिया था | उस समय अटल जी भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल के नेता थे , और इसी हैसियत के कारण उन्हे सरकार बनाने का निमंत्रण भी दिया था | वे तब भी पार्टी द्वारा प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार घोषित नहीं किए गए थे |
दूसरी बार जब वे प्रधान मंत्री बने तब वे राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार थे , ऐसा नहीं की वे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे | गठबंधन ने उनकी सर्वा स्वीकार्यता को देखते हुए अपना नेता चुना था | यह कहना सर्वथा गलत होगा की बीजेपी मे चुनाव के पूर्वा प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार चुनने की परंपरा हैं | वस्तुतः यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दबाव ही था की किसी ऐसे व्यक्ति को इस पद के लिए लाया जाये जो ''घोर''' कट्टर वादी रुख अपना सके | क्योंकि अटल जी ने या आडवाणी जी ने कभी भी सोनिया गांधी जी के लिए कोई ऐसा कथन नहीं किया जिसे '''अमर्यादित''' या '''आवंचनीय """ कहा जा सके | संघ इस रवैये को क़तई पसंद नहीं करता था | जैसा की महात्मा गांधी के बारे मे उनका रुख था की उनके बारे मे अनाप - शनाप बाते फैला कर उनकी छवि को धूमिल करने के उसके निरंतर प्रयास सदैव असफल होते रहे हैं |
मोदी के आने से सुबरमानियम स्वामी जैसे लोगो को पार्टी मे स्थान मिला जो अटल - आडवाणी के नेत्रत्व मे कभी भी घुस नहीं सके | क्योंकि वे भी मीडिया की सुर्ख़ियो मे बने रहने के लिए कुप्रसिद्ध हैं | मोदी ने भी""" आक्रामक प्रचार """ को ही प्राथमिकता दी हैं | जिसका अर्थ हैं प्रचार मे दूसरे के प्रति इतना गंदगी फैलाओ की उसका सारा ध्यान उसे हटाने मे ही लगा रहे और वह हमारे मुक़ाबले मे आने मे पिछड़ जाये सारी समभावनए हैं की सोनिया के इटालियन मूल को लेकर एक बार फिर से उन्हे विदेशी बताने का प्रचार किया जाएगा , क्योंकि वह सही भी हैं , परंतु वे सूप्रीम कोर्ट के उस फैसले का ज़िक्र कभी नहीं करेंगे जिसमे उसने इस मुद्दे को हमेशा के लिए खतम करने का निरण्य दिया था | वे नेहरू - गांधी परिवार की विरासत को बदनाम करने की कोशिस करेंगे , परंतु इस बात का ज़िक्र करना अक्सर भूल जाएँगे की इस परिवार के दो प्रधान मंत्री आतंकवादियो द्वारा मारे गए हैं | यानहा मोदी ने तो सच या झूठ ही आतंकवादी होने के ''''नाम''' पर ही चार लोगो को गोली से भुनवा दिया | देश के लिए प्राण निछावर करने वाले ने ज़रा से शक के आधार पर ही एंकाउंटर करवा दिया |
खैर शुक्रवार को हुई इस गलतबयानी पर न तो कोई सफाई पेश होगी नहीं कोई कुछ पूछेगा | जो सुषमा स्वराज वंशवाद का आरोप लगाती रही हैं दस जनपथ से काँग्रेस को चलाने की बात कहती रही हैं काँग्रेस मे पार्टी स्टार की कारवाई के बजाय हुकुमनामे की बात करती रही हैं , वे सिर्फ ''नेता प्रतिपक्ष''' की अपनी कुर्सी बचाने के लिए संघ के निर्देश के सामने दंडवत हो गयी | हालांकि यह कुर्सी अगली बार उन्हे किसी भी हालत मे नहीं मिलेगी |
शूकवार की इस बैठक के बाद अटलविहारी वाजपायी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओ का युग भारतीय जनता पार्टी से समाप्त हो गया | जनहा दूसरे डालो के नेताओ के लिए आदर और सम्मान हुआ करता था | जब कुछ भी कहने या बोलने के पूर्वा हमेशा ''मर्यादा''' का ध्यान रखा जाता था | अब तो पार्टी ने एक '' एक बाहुबली ''' को चुन लिया हैं अब वह जिधर भी पार्टी को ले जाये ......................|
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय मे शुक्रवार को हुई प्रैस कान्फ्रेंस मे आद्यकश राजनाथ सिंह ने कहा की ""पार्टी के संसदीय दल ने नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप मे चयन किया हैं """ | उन्होने कहा की पार्टी की """परंपरा"""रही हैं की चुनाव के पूर्वा प्रधान मंत्री पद के लिए व्यक्ति को चुना जाता हैं | जनहा ताक़ मुझे स्मरण हैं की अटल जी जब तेरह दिन की सरकार के प्रधान मंत्री बने तब उन्हे , राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने तब बुलाया जब काँग्रेस दल के नेता राजीव गांधी ने सरकार बनाने के प्रस्ताव को नामंज़ूर कर दिया था | उस समय अटल जी भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल के नेता थे , और इसी हैसियत के कारण उन्हे सरकार बनाने का निमंत्रण भी दिया था | वे तब भी पार्टी द्वारा प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार घोषित नहीं किए गए थे |
दूसरी बार जब वे प्रधान मंत्री बने तब वे राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार थे , ऐसा नहीं की वे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे | गठबंधन ने उनकी सर्वा स्वीकार्यता को देखते हुए अपना नेता चुना था | यह कहना सर्वथा गलत होगा की बीजेपी मे चुनाव के पूर्वा प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार चुनने की परंपरा हैं | वस्तुतः यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दबाव ही था की किसी ऐसे व्यक्ति को इस पद के लिए लाया जाये जो ''घोर''' कट्टर वादी रुख अपना सके | क्योंकि अटल जी ने या आडवाणी जी ने कभी भी सोनिया गांधी जी के लिए कोई ऐसा कथन नहीं किया जिसे '''अमर्यादित''' या '''आवंचनीय """ कहा जा सके | संघ इस रवैये को क़तई पसंद नहीं करता था | जैसा की महात्मा गांधी के बारे मे उनका रुख था की उनके बारे मे अनाप - शनाप बाते फैला कर उनकी छवि को धूमिल करने के उसके निरंतर प्रयास सदैव असफल होते रहे हैं |
मोदी के आने से सुबरमानियम स्वामी जैसे लोगो को पार्टी मे स्थान मिला जो अटल - आडवाणी के नेत्रत्व मे कभी भी घुस नहीं सके | क्योंकि वे भी मीडिया की सुर्ख़ियो मे बने रहने के लिए कुप्रसिद्ध हैं | मोदी ने भी""" आक्रामक प्रचार """ को ही प्राथमिकता दी हैं | जिसका अर्थ हैं प्रचार मे दूसरे के प्रति इतना गंदगी फैलाओ की उसका सारा ध्यान उसे हटाने मे ही लगा रहे और वह हमारे मुक़ाबले मे आने मे पिछड़ जाये सारी समभावनए हैं की सोनिया के इटालियन मूल को लेकर एक बार फिर से उन्हे विदेशी बताने का प्रचार किया जाएगा , क्योंकि वह सही भी हैं , परंतु वे सूप्रीम कोर्ट के उस फैसले का ज़िक्र कभी नहीं करेंगे जिसमे उसने इस मुद्दे को हमेशा के लिए खतम करने का निरण्य दिया था | वे नेहरू - गांधी परिवार की विरासत को बदनाम करने की कोशिस करेंगे , परंतु इस बात का ज़िक्र करना अक्सर भूल जाएँगे की इस परिवार के दो प्रधान मंत्री आतंकवादियो द्वारा मारे गए हैं | यानहा मोदी ने तो सच या झूठ ही आतंकवादी होने के ''''नाम''' पर ही चार लोगो को गोली से भुनवा दिया | देश के लिए प्राण निछावर करने वाले ने ज़रा से शक के आधार पर ही एंकाउंटर करवा दिया |
खैर शुक्रवार को हुई इस गलतबयानी पर न तो कोई सफाई पेश होगी नहीं कोई कुछ पूछेगा | जो सुषमा स्वराज वंशवाद का आरोप लगाती रही हैं दस जनपथ से काँग्रेस को चलाने की बात कहती रही हैं काँग्रेस मे पार्टी स्टार की कारवाई के बजाय हुकुमनामे की बात करती रही हैं , वे सिर्फ ''नेता प्रतिपक्ष''' की अपनी कुर्सी बचाने के लिए संघ के निर्देश के सामने दंडवत हो गयी | हालांकि यह कुर्सी अगली बार उन्हे किसी भी हालत मे नहीं मिलेगी |
शूकवार की इस बैठक के बाद अटलविहारी वाजपायी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओ का युग भारतीय जनता पार्टी से समाप्त हो गया | जनहा दूसरे डालो के नेताओ के लिए आदर और सम्मान हुआ करता था | जब कुछ भी कहने या बोलने के पूर्वा हमेशा ''मर्यादा''' का ध्यान रखा जाता था | अब तो पार्टी ने एक '' एक बाहुबली ''' को चुन लिया हैं अब वह जिधर भी पार्टी को ले जाये ......................|
In your very first paragraph you say that Shankar Dayal Sharma invited Atal Bihari Vajpayee when Rajiv Gandhi declined to form the government....Rajiv Gandhi was dead when Atal Bihari became PM for 13 days....
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