अनिवार्य शिक्षा अधिनियम की शर्त पूरी नहीं तो स्कूल बंद होगे
स्कूल में लड़के -लडकियों के लिए अलग -अलग शौचालाय की व्यवस्था नहीं होने पर अब गली - मोहल्ले की शिक्षा की दूकाने बंद होगी । क्योंकि १५ अप्रैल तक अगर कानून की शर्ते पूरी न हुई तो कोई भी व्यक्ति शिकायत कर सकता हे , फलस्वरूप इन संस्थाओ पर जुरमाना भी लग सकता हे । इस अधिनियम के अनुसार शिक्षक - शिष्य का अनुपात और छात्र - छात्राओ के लिए अलग - अलग शोचालय होना जरूरी हे । हालाँकि इस नियम का सर्वाधिक उल्लंघन शासकीय विद्यालयों में ही होगा । राज्य में लगभग पंद्रह से बीस हज़ार ग्रामीण विद्यालयों में न तो शौचालय हे नहीं प्रति तीस छात्रो पर एक शिक्षक हॆ \। अब इस स्थिति में तो सरकार ही कटघरे में आ जाती हॆ ।
क्योंकि पिछले साल अक्तूबर मे सूप्रीम कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी स्कूलो मे यानि 82,390 स्कूलो मे टॉइलेट बनाए जाये | इसके लिए सरकार ने प्रति सौचलाया 50,500 रुपये भी दिये थे | परंतु अधिकारियों की मिलीभगत से धनराशि का खर्च तो कागजो मे तो हो गया हे , पर टूटे -फूटे टॉइलेट अपनी कहानी बयान कर रहे हे | अब क्या इनकी मान्यता खतम होगी ? नहीं क्योंकि ये तो सरकारी हे | गाज़ तो निजी स्कूल पर ही गिरेगी | |अगर यह कानून सिर्फ निजी छेत्र के लिए बना हे तो क्या यह सही होगा ?
टीचर और टाट का अनुपात प्राइमरी शिक्षा का आधार हे । परन्तु नियमित शिक्षक की जगह संविदा या शिक्षक सहायको की नियुक्ति कर के मन चाहा परिणाम नहीं प्राप्त किया जा सकता ही । क्योंकि अ स्थाई आदमी से मन चाहा परिणाम पाया जा सकता हे ? शायद नहीं , इसलिए की साल दर साल कांट्रैक्ट
स्कूल में लड़के -लडकियों के लिए अलग -अलग शौचालाय की व्यवस्था नहीं होने पर अब गली - मोहल्ले की शिक्षा की दूकाने बंद होगी । क्योंकि १५ अप्रैल तक अगर कानून की शर्ते पूरी न हुई तो कोई भी व्यक्ति शिकायत कर सकता हे , फलस्वरूप इन संस्थाओ पर जुरमाना भी लग सकता हे । इस अधिनियम के अनुसार शिक्षक - शिष्य का अनुपात और छात्र - छात्राओ के लिए अलग - अलग शोचालय होना जरूरी हे । हालाँकि इस नियम का सर्वाधिक उल्लंघन शासकीय विद्यालयों में ही होगा । राज्य में लगभग पंद्रह से बीस हज़ार ग्रामीण विद्यालयों में न तो शौचालय हे नहीं प्रति तीस छात्रो पर एक शिक्षक हॆ \। अब इस स्थिति में तो सरकार ही कटघरे में आ जाती हॆ ।
क्योंकि पिछले साल अक्तूबर मे सूप्रीम कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी स्कूलो मे यानि 82,390 स्कूलो मे टॉइलेट बनाए जाये | इसके लिए सरकार ने प्रति सौचलाया 50,500 रुपये भी दिये थे | परंतु अधिकारियों की मिलीभगत से धनराशि का खर्च तो कागजो मे तो हो गया हे , पर टूटे -फूटे टॉइलेट अपनी कहानी बयान कर रहे हे | अब क्या इनकी मान्यता खतम होगी ? नहीं क्योंकि ये तो सरकारी हे | गाज़ तो निजी स्कूल पर ही गिरेगी | |अगर यह कानून सिर्फ निजी छेत्र के लिए बना हे तो क्या यह सही होगा ?
टीचर और टाट का अनुपात प्राइमरी शिक्षा का आधार हे । परन्तु नियमित शिक्षक की जगह संविदा या शिक्षक सहायको की नियुक्ति कर के मन चाहा परिणाम नहीं प्राप्त किया जा सकता ही । क्योंकि अ स्थाई आदमी से मन चाहा परिणाम पाया जा सकता हे ? शायद नहीं , इसलिए की साल दर साल कांट्रैक्ट
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