राजनीती में वंश या विरासत, सच क्या हैं ?
हमारी राजनीती में गाहे -बगाहे दो मुद्दों पर चर्चा बहुत होती हैं ---एक हैं वंशवाद और दूसरा हैं करप्शन , इस मुद्दे पर बोलने के लिए काफी तर्क भी हैं और तथ्य भी . वैसे ये मुद्दे अक्सर चुनावो के पहले ही उठाते हैं या यूँ कहे की उछाले जाते हैं । वजह एक ही होती हैं की सामने वाले को कैसे गलत सिद्ध कर के नीचा दिखाया जा सके , और सरे - आम यह बताया जा सके की ''हम कितने उज्जवल और ये कितने गंदे ''।किस्सा - कोताह
ये की धरम - बिरादरी के बाद अब यह मुद्दा मीडिया और खबरों की दुनिया का टकसाली जुमला बन गया हैं । वैसे यह मसला गैर कांग्रेसी पार्टियों द्वारा ही उठाया जाता रहा हैं , क्योंकि निसाने पर तो नेहरु -गाँधी परिवार ही रहता हैं , क्योंकि वह ही इस देश का पहला परिवार हैं जिसके पंद्रह सदस्यों में से नौ ने सत्ता का सुख भोगा हैं ।ज़ाहिर हैं आठ ने गुलामी के ज़माने में जेल भी भोगी थी । इस परिवार के दो सदस्यों की हत्या भी हुयी ।अब सवाल यह हैं की क्या यही परिवार देश के निर्णायक फैसलों का कर्ता -धर्ता हैं ? और अगर हैं तो उसके लिए उसे कोसा जाए या सराहा जाए ?
इस विषय को को परखे तो पायेंगे की हमारे संसदीय लोकतंत्र में वंशवाद की सम्भावना कतई नही हो सकती , क्योंकि मामला तो चुनाव से तय होना हैं ,जिसका आधार व्यसक मताधिकार हैं ।अब अगर वोटर ही चाहेँगे तभी विरासत या तथाकथित वंशवाद चल पायेगा अन्यथा नहीं ।इस बात की पूरी सम्भावना हो सकती हैं की इस निर्वाचन में धन बल या बाहुबल के सहारे कोई एक या दो बार तो निर्वाचित हो सकता हैं पर लम्बे समय तक नहीं ।एवं इस तथ्य को अगर कोई नहीं मंज़ूर करता हैं तो हठधार्मिता ही होगी । 1952 में पहली बार संविधान के तहत चुनाव हुए , तब से लेकर अब तक पंद्रह बार चुनाव हो चुके हैं ,अब अनेको लोक सभा सदस्य हैं जिन्हे उनके मतदाताओ ने कई - कई बार निर्वाचित किया हैं ।उदहारण के तौर पर ताजमहल की नगरी आगरा से सेठ अचल सिंह को पांच बार चुन गया , ।पूर्वी उत्तर प्रदेश की डुमरिया गंज छेत्र से क़ाज़ी ज़लील अब्बासी को भी इस छेत्र का प्रतिनिधित्व करने का पांच बार मौका मिला ,दक्षिण भारत में भी आंध्र - तमिलनाडु से अनेको सदस्यों ने अपने छेत्र का तीन से पांच बार प्रतिनिधित्व किया ।
अब इसे वंशवाद कहा जाए या राजनितिक विरासत , मेरी समझ से यदि इन लोगो ने अपने छेत्र और वंहा के विकास का ध्यान नहीं रखा होता तो वोटर अवश्य ही नकार देते । अगर ऐसी विरासत वालो का लेख - जोखा देखा देखा जाए तो हमारे प्रधान मंत्रियो के परिवार के सदस्य भी चुनी गए हैं । लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री संसद रहे उनके अनुज उत्तर प्रदेश में विश्व नाथ प्रताप सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे । बाद में एक सदस्य तो भा जा प् के सदस्य हुए ।मोरारजी भाई देसाई के पुत्र भी सांसद हुए । चरण सिंह के के पुत्र चौधरी अजित सिंह वर्त्तमान लोक सभा में अपने पुत्र जयंत चौधरी के साथ सदस्य हैं पूर्व प्रधान मंत्री देवगौड़ा तथा उनके पुत्र कुमारस्वामी भी सांसद रहे ,उनके परिवार के लोग कर्नाटक विधान सभा के सदस्य रहे ।नरसिम्हा राव के पुत्र आन्ध्र में मंत्री रहे और दूसरे पुत्र सांसद रहे ।बिहार में तो अनुग्रह नारायण सिंह के परिवार से तो एक दर्जन से ज्यादा लोग सक्रिय राजनीती में रहे .।तमिलनाडु में करूणानिधि का परिवार तथा आन्ध्र में एन टी रामाराव के परिवार से अनेको लोग देश और प्रदेश की राजनीती में हैं ।कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का परिवार तो अब तक सक्रिय राजनीती में हैं ,इसी प्रकार राजस्थान में मिर्धा और मद्रेना परिवार के लोग सक्रिय राजनीती में हैं ।
मध्य प्रदेश में भी प्रथम मुख्य मंत्री रविशंकर शुक्ल के दोनों पुत्र श्याम चरण और विद्या चरण तथा अब श्यामाचरण के पुत्र अमितेश तीसरी पीड़ी के नेता हैं ।रीवां राज्य के मुख्या मंत्री आव्धेस प्रताप सिंह के पुत्र गोविन्द नारायण सिंह भी मुख्या मंत्री रहे ,और उनके दो पुत्र भी राजनीति कर रहे हैं , वीरेंदर कुमार सक्लेत्चा के पुत्र भ जा प् विधायक हैं कैलाश जोशी के पुत्र भी विधायक हैं सुंदर लाल पटवा के के भतीजे भी विधायक हैं ।अब कांग्रेस में अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह नेता प्रति पक्ष हैं मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा भी राजनीती में हैं ।एक ही निर्वाचन छेत्र से सर्वाधिक बार चुनी जाने वाले मुख्या मंत्री रहे बाबूलाल गौर शिवराज सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री हैं और उनकी पुत्र वधु भोपाल की महापौर हैं । यह लिस्ट और भी लम्बी हो सकती हैं , पर उस से कोई फायदा नहीं । में सिर्फ यही तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ की यह वंश वाद नहीं हैं ।
वास्तव में यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि हर परिवार की एक विरासत होती हैं , जिसे समाज मानता हैं , और चुनाव आइसे समय में वह उस विरासत को स्वीकृति देता हैं ।इसलिए वंशवाद की बात पूरी तरह से बेमानी हैं । हाँ यह कहना सही होगा की इन परिवारों के त्याग - परिश्रम को लोगो ने याद रखा और जब जरूरत पड़ी तो उस पर मुहर लगा दी ।यही हैं राजनितिक विरासत न की वंशवाद ।
इस विषय को को परखे तो पायेंगे की हमारे संसदीय लोकतंत्र में वंशवाद की सम्भावना कतई नही हो सकती , क्योंकि मामला तो चुनाव से तय होना हैं ,जिसका आधार व्यसक मताधिकार हैं ।अब अगर वोटर ही चाहेँगे तभी विरासत या तथाकथित वंशवाद चल पायेगा अन्यथा नहीं ।इस बात की पूरी सम्भावना हो सकती हैं की इस निर्वाचन में धन बल या बाहुबल के सहारे कोई एक या दो बार तो निर्वाचित हो सकता हैं पर लम्बे समय तक नहीं ।एवं इस तथ्य को अगर कोई नहीं मंज़ूर करता हैं तो हठधार्मिता ही होगी । 1952 में पहली बार संविधान के तहत चुनाव हुए , तब से लेकर अब तक पंद्रह बार चुनाव हो चुके हैं ,अब अनेको लोक सभा सदस्य हैं जिन्हे उनके मतदाताओ ने कई - कई बार निर्वाचित किया हैं ।उदहारण के तौर पर ताजमहल की नगरी आगरा से सेठ अचल सिंह को पांच बार चुन गया , ।पूर्वी उत्तर प्रदेश की डुमरिया गंज छेत्र से क़ाज़ी ज़लील अब्बासी को भी इस छेत्र का प्रतिनिधित्व करने का पांच बार मौका मिला ,दक्षिण भारत में भी आंध्र - तमिलनाडु से अनेको सदस्यों ने अपने छेत्र का तीन से पांच बार प्रतिनिधित्व किया ।
अब इसे वंशवाद कहा जाए या राजनितिक विरासत , मेरी समझ से यदि इन लोगो ने अपने छेत्र और वंहा के विकास का ध्यान नहीं रखा होता तो वोटर अवश्य ही नकार देते । अगर ऐसी विरासत वालो का लेख - जोखा देखा देखा जाए तो हमारे प्रधान मंत्रियो के परिवार के सदस्य भी चुनी गए हैं । लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री संसद रहे उनके अनुज उत्तर प्रदेश में विश्व नाथ प्रताप सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे । बाद में एक सदस्य तो भा जा प् के सदस्य हुए ।मोरारजी भाई देसाई के पुत्र भी सांसद हुए । चरण सिंह के के पुत्र चौधरी अजित सिंह वर्त्तमान लोक सभा में अपने पुत्र जयंत चौधरी के साथ सदस्य हैं पूर्व प्रधान मंत्री देवगौड़ा तथा उनके पुत्र कुमारस्वामी भी सांसद रहे ,उनके परिवार के लोग कर्नाटक विधान सभा के सदस्य रहे ।नरसिम्हा राव के पुत्र आन्ध्र में मंत्री रहे और दूसरे पुत्र सांसद रहे ।बिहार में तो अनुग्रह नारायण सिंह के परिवार से तो एक दर्जन से ज्यादा लोग सक्रिय राजनीती में रहे .।तमिलनाडु में करूणानिधि का परिवार तथा आन्ध्र में एन टी रामाराव के परिवार से अनेको लोग देश और प्रदेश की राजनीती में हैं ।कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का परिवार तो अब तक सक्रिय राजनीती में हैं ,इसी प्रकार राजस्थान में मिर्धा और मद्रेना परिवार के लोग सक्रिय राजनीती में हैं ।
मध्य प्रदेश में भी प्रथम मुख्य मंत्री रविशंकर शुक्ल के दोनों पुत्र श्याम चरण और विद्या चरण तथा अब श्यामाचरण के पुत्र अमितेश तीसरी पीड़ी के नेता हैं ।रीवां राज्य के मुख्या मंत्री आव्धेस प्रताप सिंह के पुत्र गोविन्द नारायण सिंह भी मुख्या मंत्री रहे ,और उनके दो पुत्र भी राजनीति कर रहे हैं , वीरेंदर कुमार सक्लेत्चा के पुत्र भ जा प् विधायक हैं कैलाश जोशी के पुत्र भी विधायक हैं सुंदर लाल पटवा के के भतीजे भी विधायक हैं ।अब कांग्रेस में अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह नेता प्रति पक्ष हैं मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा भी राजनीती में हैं ।एक ही निर्वाचन छेत्र से सर्वाधिक बार चुनी जाने वाले मुख्या मंत्री रहे बाबूलाल गौर शिवराज सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री हैं और उनकी पुत्र वधु भोपाल की महापौर हैं । यह लिस्ट और भी लम्बी हो सकती हैं , पर उस से कोई फायदा नहीं । में सिर्फ यही तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ की यह वंश वाद नहीं हैं ।
वास्तव में यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि हर परिवार की एक विरासत होती हैं , जिसे समाज मानता हैं , और चुनाव आइसे समय में वह उस विरासत को स्वीकृति देता हैं ।इसलिए वंशवाद की बात पूरी तरह से बेमानी हैं । हाँ यह कहना सही होगा की इन परिवारों के त्याग - परिश्रम को लोगो ने याद रखा और जब जरूरत पड़ी तो उस पर मुहर लगा दी ।यही हैं राजनितिक विरासत न की वंशवाद ।
No comments:
Post a Comment