Kalam kay kalam kitney uchit ? डॉ अपज कलाम की नयी पुस्तक turning points के 153 पेज पर उन्होने कुछ सुझाव दिए है जिनके द्वारा भ्रस्ताचार और कुशासन को दूर करने के सुझाव हैं , परन्तु कुछ सुझाव काफी आव्यहरिक हैं . उन्होने यह माना हैं की केन्द्र या राज्यों मैं मिलीजुली सरकारों का बनना कुछ राजनैतिक कारणों से जरूरी लग रहा हैं , ऐसे मैं सरकारों की स्थिरता
एक अहम् मुद्दा हैं . परन्तु जेंह किसी एक जन प्रतिनिधि द्वारा दलबदल को गैरकानूनी करार दिया गया हैं वही साझा सरकारों के दलों द्वारा अकारण समर्थन वापस लेने से सरकार आस्थिर हो जाती हैं एसे मैं भ्रस्स्ताचार की आशंका बढ जाती हैं . इसलिए दलबदल निरोधक कानून का प्रयोग जरूरी हो जाता हैं . यह सुझाव जंहा स्वागत करने योग्य हैं . वही एअक अन्य सुझाव मैं उनका कहना हैं की एक संविधान संसोधन द्वारा मंत्रिमंडल के एक चौथाई सदस्य एक्सपर्ट होने चहिये और वे गैर सदस्य हनी चहिये . अब यह प्रथा switizerland के संविधान मैं हैं ,वंहा मंरिमंडल के सदस्य सदन के द्वारा चुनी जाते हैं पर वे सदन के सदस्य नहीं होते हैं . वे नियत समय तक अपना पद धारण करते हैं .उनके द्वारा लाया गया बिल पास नहीं होने पर उन्हे पदत्याग नहीं करना होता . budget मैं कटौती प्रस्ताव के पास होने पर उन्हे त्याग पत्र नहीं देना पड़ता ना ही सर्कार गिरती हैं ,वह तो नियत हैं . पर किया हिंदुस्तान मैं ऐसा हो सकता हैं ?जब तक सभी रास्ट्रीय और छेत्रिय दल राजी नहीं होते तब तक यह लक्ष्य नहीं प् सकते . एक सुझाव यह भी हैं की स्पीकर को यह अधिकार हो की वह सदन की कारवाही मैं बार बार बाधा डालने वाले को स्वयं निलंबित कर सके या निकाल सके उन्होने धवानिमत को तुरंत समाप्त करने तथा सभी विध्हायी कार्यो पर कोउन्तिंग करने की व्यस्था का सुझाव दिया हैं . उनके अनुसार हर मंत्री आपने विभाग के तर्गातेस के बारे मैं सदन को बताये और वार्षिकलक्ष्य के बारे मैं ब्यौरा सदन मैं दे . जब तक सदन आपना पूरा कार्य सम्पादित न कर ले तब तक स्थगन नहीं किया जाए .अब इन सुझावों को तो अन्य पार्टिया तो किया ममता बन्नेर्जी की पार्टी भी नहीं मंज़ूर करेगी .
एक अहम् मुद्दा हैं . परन्तु जेंह किसी एक जन प्रतिनिधि द्वारा दलबदल को गैरकानूनी करार दिया गया हैं वही साझा सरकारों के दलों द्वारा अकारण समर्थन वापस लेने से सरकार आस्थिर हो जाती हैं एसे मैं भ्रस्स्ताचार की आशंका बढ जाती हैं . इसलिए दलबदल निरोधक कानून का प्रयोग जरूरी हो जाता हैं . यह सुझाव जंहा स्वागत करने योग्य हैं . वही एअक अन्य सुझाव मैं उनका कहना हैं की एक संविधान संसोधन द्वारा मंत्रिमंडल के एक चौथाई सदस्य एक्सपर्ट होने चहिये और वे गैर सदस्य हनी चहिये . अब यह प्रथा switizerland के संविधान मैं हैं ,वंहा मंरिमंडल के सदस्य सदन के द्वारा चुनी जाते हैं पर वे सदन के सदस्य नहीं होते हैं . वे नियत समय तक अपना पद धारण करते हैं .उनके द्वारा लाया गया बिल पास नहीं होने पर उन्हे पदत्याग नहीं करना होता . budget मैं कटौती प्रस्ताव के पास होने पर उन्हे त्याग पत्र नहीं देना पड़ता ना ही सर्कार गिरती हैं ,वह तो नियत हैं . पर किया हिंदुस्तान मैं ऐसा हो सकता हैं ?जब तक सभी रास्ट्रीय और छेत्रिय दल राजी नहीं होते तब तक यह लक्ष्य नहीं प् सकते . एक सुझाव यह भी हैं की स्पीकर को यह अधिकार हो की वह सदन की कारवाही मैं बार बार बाधा डालने वाले को स्वयं निलंबित कर सके या निकाल सके उन्होने धवानिमत को तुरंत समाप्त करने तथा सभी विध्हायी कार्यो पर कोउन्तिंग करने की व्यस्था का सुझाव दिया हैं . उनके अनुसार हर मंत्री आपने विभाग के तर्गातेस के बारे मैं सदन को बताये और वार्षिकलक्ष्य के बारे मैं ब्यौरा सदन मैं दे . जब तक सदन आपना पूरा कार्य सम्पादित न कर ले तब तक स्थगन नहीं किया जाए .अब इन सुझावों को तो अन्य पार्टिया तो किया ममता बन्नेर्जी की पार्टी भी नहीं मंज़ूर करेगी .
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