राजद्रोह
कानूनों और काँग्रेस नेताओ
की हत्या का इतिहास
देश
में राजद्रोह के आरोप ब्रिटिश
शासन काल में लगाए जाते थे
क्यूंकी तब भारत एक साम्राज्य
का हिस्सा था |
देश
के प्रधान न्यायाधीश रमन्ना
ने सही कहा की राजद्रोह का
कानून आज़ादी की लड़ाई में महात्मा
गांधी और तिलक जैसे नेताओ पर
लगा |
आखिरी
राजद्रोह का मुकदमा लाल किले
में कर्नल ढिल्लन और सहगल तथा
शाहनवाज़ के खिलाफ चला था |
वे
ब्रिटिश फौज छोड़ कर सुभाष
चन्द्र बॉस की इंडियन नेशनल
आर्मी में चले गए थे |
जिनकी
पैरवी में मदन मोहन मालवीय
-जवाहर
लाल नेहरू और कैलाश नाथ काटजू
तथा बहुत से काँग्रेस के नेताओ
ने काला कोट पहन कर की थी |
उसके
बाद आधा दर्जन नेताओ की राजनीतिक
हत्या हुई पर "”””देसद्रोह
"”
कानून
के अंतर्गत कारवाई नहीं हुई
|
पर
आजकल प्रधान मंत्री और उत्तर
प्रदेश के मुख्यमंत्री को "”
धम्की
के एक फोंन से ही "”राज़
द्रोह या देश द्रोह "”
का
कानून अमल में आ जाता हैं |
भीमा
कोरेगाव्न और काकोरी से प्रेसर
कुकर बम की बरामदगी में एक
कामन बात हैं ----------दोनों
के ही आरोपी क्रमश प्रधान
मंत्री और मुख्य मंत्री की
हत्या का "”
का
षड्यंत्र कर रहे थे !
अब
पेगासास कांड या कहे भारत का
वाटर गेट कांड से यह तो संकेत
मिलता ही हैं की भारत सरकार
की एजेंसिया लोगो के मोबाइल
और कम्प्युटर की "”जासूसी
करा रहा थी "”
! जिसका
सबूत भीमा कोरेगाव्न केस में
गिरफ्तार लोगो के खिलाफ लगाए
गए आरोप हैं |
यालगर
परिषद भी नाम हैं इस कांड का
,जिसके
आरोपी आरोपी उच्च शिक्षित है
इस लिए उनके लैपटाप में सबूत
बताए गए |
जबकि
काकोरी और लखनऊ में गिरफ्तार
किए गए सभी आरोपी मुस्लिम हैं
|
उन
पर आरोप हैं की वे अल -कायदा
जैसे अंतराष्ट्रीय आतंकी
संगठन के सदस्य हैं |
जिसने
उन्हे प्रैशर कूकर बम बनाने
की तकनीक के साथ प्रदेश के
नेताओ की हत्या करने का निर्देश
दिया था !
ऐसा
उत्तर प्रदेश पुलिस के कानून
एवं व्यसथा के महानिदेशक का
दावा हैं |
अब
उत्तर प्रदेश पुलिस की आतंक
विरोधी दस्ते ने मौके से प्रेसर
कुकर और गंधक तथा पोटाश आदि
बरामद किया हैं |
ये
सभी विस्फोटक बनाने के काम
आते हैं |
हाँ
छोटे -मोटे
पटाखे भी इनहि सब से बनते हैं
|
“” अल
कायदा "”
जैसे
संगठन जो आतंकी घटनाओ के लिए
"””
सी
फोर "”
जैसे
विस्फोटक का इस्तेमाल सीरिया
और अफगानिस्तान में करते हैं
-----वे
अपने स्लीपर सेल उआ पुलिस की
भाषा में कहे तो "”
माँड्यूल
"”
को
इतने घटिया और प्राचीन तरीके
का इस्तेमाल करने की सलाह
देंगे !
जम्मू
काश्मीर में जनहा आतंकी घटनाओ
का सबसे ज्यड़ा '’’प्रकोप'’’
है
वनहा भी इस विधि का इस्तेमाल
नहीं पाया गया !
सोचने
और विचार करने की बात है |अब
सच क्या हैं वह तो अदालत में
ही तय होगा ----और
यह भी निश्चित है की अदालत में
इन मामलो की सुनवाई भी सालो
ले सकती हैं ,
जैसा
भीमा कोरे गाव्न में हो रहा
हैं ,
की
आरोपी हिरासत में ही फादर
स्टेंन स्वामी की मेडिकल
सुविधा के अभाव में मौत भारतीय
न्याय व्यवस्था के लिए एक दाग
दे गया हैं |
वह
इसलिए की बिना अपराध सिद्ध
हुए भी एक व्यक्ति को बंदी गृह
में जान गवानी पड़ी !!!!!
मोदी
सरकार की एक "””आदत
है की अपनी हर असफलता के लिए
70
साल
के कुशासन को दोष देना "””
जैसे
उनका शासन तो सतयुग के राजा
हरिश्चंद्र का राज हैं !
2-
काँग्रेस
नेताओ का जितना खून इस लोकतन्त्र
के लिए बहा उसका भी तो हिसाब
करो सत्तर साल में !
देश
में राजनीतिक विरोधियो की
हत्या का इतिहास तो राष्ट्र
पिता महात्मा गांधी की 30
जनवरी
1948
को
बिरका भवन से प्रारम्भ होता
हैं |
जब
कट्टर हिंदुवादियों ने अपने
"”
पागलपन
"”
में
एक महामानव की हत्या की !
यद्यपि
वे सरकार में किसी किसम की
भागीदारी नहीं कर रहे थे "
बस
वे हिन्दू -
मुस्लिम
और अन्य धर्मो को एक साथ रहने
की बात कर रहे थे |
2-- देश
में दूसरी राजनीतिक हत्या
पंजाब के मुख्य मंत्री प्रताप
सिंह कैरो की 6
फरवरी
1965
को
दिल्ली -चंडीगड
राजमार्ग पर रसोई नमक ग्राम
के पास हुई थी हत्यारे नेपाल
भाग गए थे जिसे तत्कालीन डीआईजी
अश्वनी कुमार की टीम ने नेपाल
में जा कर गिरफ्तार किया |
तब
मुख्य मंत्री की हत्या के
मामले में देशद्रोह या राजद्रोह
की धाराये नहीं लगी थी !!!!
2 बी
----
दूसरी
राज नैतिक हत्या तत्कालीन
केंद्रीय मंत्री ललित नारायण
मिश्रा की भागलपुर में हुए
विस्फोट में हुई थी |
राजद्रोह
का धारा इसमें भी नहीं लगी थी
इसलिए यह मुकदमा 40
साल
चला !!!
2 सी
– देश की प्रधान मंत्री इन्दिरा
गांधी की हत्या उनके सिख
अंगरक्षक द्वरा 31
अक्तूबर
1984
को
उनके निवास पर कर दी गयी |
---तब
भी उस मामले में राजद्रोह की
धराए नहीं लगी |
भारतीय
दंड संहिता के तहत जांच और
मुकदमा चला |
और
सज़ा हुई !
2 डी---
22 मई
1991
को
पूर्व प्रधाना मंत्री राजीव
गांधी की चुनाव प्रचार के
दौरान श्री लंका के लिट्टे
नमक आतंकवादी संगठन की एक
महिला द्वरा आतमघाती बम से
उड़ा दिया गया |
मुकदमा
चला उनही आईपीसी की धाराओ में
,
उसकी
अपराधी आज भी जेल की सज़ा काट
रही हैं |
यह
गांधी परिवार की सदाशयता थी
की राजीव गांधी की बेटी प्रियंका
ने उससे जेल में मुलाक़ात की
और सार्वजनिक बयान में कहा
की "”
हमने
उसे उसके गुनाहो के लिए नाफ़
कर दिया हैं "””
2- ई
-
पंजाब
में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह
को 31
अगस्त
1995
को
बम से उड़ा दिया |
उस
अपराध के आरोपी आज भी जेल में
हैं |
जब
मोदी सरकार द्वरा बेअंत सिंह
के हत्यारो को जेल से रिहा
करने की खबरे छपी तब उनके पोते
गुरणित सिंह जो की सांसद हैं
-उन्होने
संसद में सवाल पुच्छा की क्या
मोदी सरकार मुख्यमंत्री के
हत्यारो को माफी देकर रिहा
कर रही हैं ?
तब
गृह मंत्री ने अमित शाह ने इस
बात का खंडन किया |
इस
कांड की भी जांच राज द्रोह या
देशद्रोह के काले लनून के तहत
नहीं हुई वरन भारतीय दंड संहिता
के तहत ही हुई |
2-एफ
-
मध्य
प्रदेश में दिग्विजय सिंह
की सरकार में मंत्री लिखिराम
कांवरे की बालाघाट में उनके
गाव के निवास से नक्षसलियों
ने अपहरण कर उनकी गला काट कर
हत्या करदी |
मुकदमें
फिर भी वर्तमान विधि के अंतर्गत
चले |
और
अपराधियो को सज़ा हुई |
2जी
इन घटनाओ के बाद छतीसगड में
काँग्रेस के समूहिक नेत्रत्व
की जिस प्रकार हत्या की गयी
उसकी मिसाल मिलना कठिन हैं
|
पूर्व
केंद्रीय मंत्री विद्याचरण
शुक्ल तथा प्रदेश काँग्रेस
अध्याकाश पटेल समेत 25
मई
2013
को
सात लोगी को की समूहिक हत्या
की घटना हुई |
उस
समय प्रदेश में बीजेपी की
सरकार थी और मुख्यमंत्री थे
रमन सिंह !
तब
भी सिर्फ जांच हुई राजद्रोह
का कानून नहीं लगे गया
!!!
अंत
में यही कहना हैं की प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी जिन
प्रधान मंत्रियो पर आरोप लगा
रहे हैं की उन्होने देश को
बर्बाद किया – भ्रस्ताचर किया
,
वे
भूल जाते हैं की उन्होने अपनी
जान भी देश के लिए क़ुर्बान की
|
जबकि
नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथा
को अपने प्राण का इतना भाय
हैं की वे एक एसएमएस या मोबाइल
काल पर अथवा यूपी पुलिस की तरह
"”खुफिया
"”
सूचना
पर कुकर बम की थ्योरी बता कर
राज्य भर में मुस्लिमो को
गिरफ्तार करते हैं !
मोदी
सरकार के समय में सर्वाधिक
राजद्रोह के और यूएयपीए तथा
एनएसए आदि के तहत उन कानूनों
में आरोपियों को गिरफ्तार
करते हैं ---जिसमे
जमानत का प्रविधान नहीं हैं
|
इस
प्रकार 8
साल
या दस साल तक आरोपी जेल में
रहने के बाद "”बेदाग
"”
हो
कर पर उम्र के सुनहरे साल खोकर
जेल से बाहर आता हैं |
उसकी
बेगुनाही बेकार हो जाती हैं
--क्यूंकी
सरकारी कागजो में उस "”बेगुनाह
"”
के
बिताए सालो की भरपाई की जिम्मेदारी
"”””किसी
की नहीं है --कानून
के अनुसार !!!
कितना
अचरज हैं की सरकरे दुश्मनी
निकलने अपने विरोधियो के खिलाफ
इसका इस्तेमाल कर रही हैं
---और
कोई अदालत सरकार को जिम्मेदार
या गुनहगार नहीं साबित कर पा
रही है !
आखिर
में तो वह सरकार हैं जिसका
चेहरा कोई नहीं है !
‘
‘’