Jul 22, 2010
चाँद सितार्रे तय करते हैं संतान का भाग्य एवं भविष्य
क्या जैसी संता न चाहे वैसी ही उत्पति हो सकती है ? शुक्राणु सुरक्छित कर या जेनेटिक विधि द्वारा ऐसा किये जाने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता ,परन्तु क्या भारतीय औएर्वेदिक रीती रिवाज से २१ व़ी सदी मैं ऐसा संभव हैं ?शायद लोग इसे कोरी गप्प माने पर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नो लाजी मुंबई के सबसे नौजवान अध्यापक तथागत अवतार तुलसी इसके प्रमाण हैं , २२साल की उम्र और अपनी ही उम्र के लोगो को शिक्षित करना , वह भी भौतिक विज्ञानं मैं कोई मामूली बात नहीं हैं .परन्तु यह सत्य हैं की उनके माता पिता ने अपनी तीसरी संतान के लिए एक ऐसी विधि का प्रयोग क्या जो सर्वथा भारतीय परिवेश मैं ही संभव हैं . यह कहा जा सकता हैं की रोबोट की ही तरह उनका जन्म ही विद्वान होने के लिए हुआ था , ऐसा उनके पिता प्रोफ्फेसर तुलसी नारायण प्रसाद का कहना हैं . वे सर्वोच्च न्यायालय मैं वकालत करते हैं और खगोअल आनुवंसिकी के गंभीर अध्येता हैं उन्होने अपने परिचितों और मित्रो को कई बार अपनी विधि के बारे मैं बताया पर सभी ने कोरी लंतरानी कह कर हवा मैं लटका दिया . पर नक्षत्रो और छंद सितारों के आधार पर संतान के लिंग -गुण-दोष और भविष्य निर्धारित करने की विधि को सिद्ध करने के लिए उन्होने वैदिक परंपरा का सहारा लिया . सनातन धर्मं मैं गर्भाधान के पूर्व से ही माता -पिता को मन चाही संतान के लिए अनेक संस्कार करने का विधान हैं . जिसे वेस्टर्न मूल्यों मैं पले आजकल के लोगो को करना दकियानूसी लगता हैं . बस यही सिद्ध करने के लिए प्रो तुलसी नारायण प्रसाद को तथागत अवतार तुलसी को धरा पर लाना पड़ा .नौ साल की उम्र मैं दर्ज़ा दस पास करना और दस वर्ष की उम्र मैं विज्ञानं का स्नातक हो जाना एअक चमत्कार से कम नहीं था .ऐसा सर्वोच्च न्यायालय के हस्तछेप से ही संभव हुआ .बारह वर्ष के पूर्व वे विज्ञानं मैं स्नाकोतर {मास्टर्स डिग्री } हासिल कर चुके थे . एवं २२ वर्ष मैं देश की प्रतिष्ठित संस्था मैं सहायक प्रोफ़ेसर बन चुके थे
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