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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 8, 2025

 

याद यादों झरोखे से :-

आज सन 2024 मे यह कल्पना करना भी आज के युवकों को अचरज लगेगा की कभी देश की लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओ के चुनाव सामाजिक और आर्थिक नारों पर लड़े जाते थे ! और दलीय प्रतिद्वंदी भी एक दूसरे के प्रति सद्भाव रखते थे | आज मुझे कुछ ऐसी ही घटनाए याद आ रही है | 1957 का देश मे दूसरा आम चुनाव था | उस समय मुख्य रूप से काँग्रेस और प्रजा सोशलिस्ट तथा जनसंघ { भारतीय जनता पार्टी की पूर्वज } एवं कम्युनिस्ट पार्टी ही हुआ करती थी | यू तो सुभाष बाबू की फारवर्ड पार्टी और हिन्दू महासभा तथा करपात्री महराज की राम राज्य परिषद भी मैदान में कुछ जगहों पर अपना भाग्य आज़माती थी | काँग्रेस पार्टी महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज्य और किसानों के भूमि सुधारों की मांग पर जनता के बीच जाती थी | वनही प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नारा जो मुझे आज तक याद है -- वह देश में एक निश्चित वेतन पॉलिसी की पकसधार थी ----- नारा था "”” सौ से कम ,नया हजार से जयदा , सोशलिस्ट का यही तकाजा "” | तत्कालीन ब्रिटेन में लेबर पार्टी भी राष्टीय वेतन नीति की समर्थक थी |

आज यह नारा अपने अर्थ खो चुका हैं -- कारण है की मंहगाई ने "”मुद्रा "” की शक्ति काफी काम कर दी हैं | सोचिए 67 वर्ष पूर्व एक श्रमिक का महीने भर का वेतन एक सैकड़ा होता था ,जिसमे वह अपने परिवार का भरण पोषण करता था | 1957 मे ही सोलह आने , और चौसठ पैसे का रुपया --- सौ पैसे का हो गया | सोलह छाँटाक या चार पाव के सेर की जगह ग्राम और किलोग्राम आ गए थे ! उस समय छह आने का एक सेर चीनी {शक्कर} मैंने खरीदा हैं |

यह तो हुई आर्थिक स्थिति की बात , अब आते हैं राजनीतिक सदाशयता पर | रायबरेली संसदीय चुनाव छेत्र से स्वर्गीय फिरोज गांधी काँग्रेस प्रत्याशी के रूप मे लड़ते थे | उनके खिलाफ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नन्द किशोर प्रत्याशी थे | फिरोज साहब अपनी जीप से छेत्र का दौरा करते और चाय पीने रॉयबरेली रेलवे स्टेशन आते थे | उन दिनों चाय बहुत अभिजात्य वर्ग के लोगों का पे होता था | ब्रुक बॉन्ड और लिप्टन वाले अपनी चाय का प्रचार जुलूस निकाल कर करते और सड़क के किनारे खड़े लोगों को "”फ्री "” मे चे पिलाते थे | यही हाल बीड़ी और सिगरेट कंपनियों का था | मुझे स्मरण है कैवेंडर्स और बीड़ी नंबर 207 का प्रचार | वे भी दो - दो सिगरेट और बीड़ी के पैकेट बना कर लोगों को बांटते थे | सोचिए आज फ्री की चे और सिगरेट - बीड़ी वितरित करना संभव नहीं लगता | यह वैसे ही था जैसे रिलायंस कंपनी ने पहले - पहले मोबाईल मे डेडीकेटेड सिम देकर "”नाममात्र शुल्क पर सभी को बांटना शुरू किया था | जिससे उनके प्रतिद्वंदी टाटा और एयरटेल आदि मात कहा गए | और आज उनकी किराये की दरे हर छह माह मे बदती जाती हैं | मतलब यह की जनता को एक बार "”कोई लत या आदत डाल दो , फिर आपका काम सिर्फ बेचना ही रह जाएगा |